मीरा बाई के विषय में हम सभी ने बहुत सारी कथाये पढ़ी है, सुनी है एवं जानी है | जब वह बहूत ही छोटी थी , उसी के गाव में बाराती आयी हुई थी, मीरा ने बहुत ही सहजता से अपनी माँ से पूछा कि ये सब क्या हो रहा है | माँ ने कहा कि गाव में शादी हो रही है , देखो वह दूल्हा है, इसी दुल्हे से इस गाव कि लड़की का शादी होने वाला है | मीरा अपने माँ से पूछी , मेरा दूल्हा कौन है ? सामने भगवान कृष्ण कि मूर्ति राखी हुई थी , उसी को देखकर माँ ने ऐसे ही कह दिया कि तुम्हारा दूल्हा ये कृष्ण है |बस क्या था , मीरा उसी दिन से मन में ये ठान लिया कि मेरा दूल्हा ये कृष्ण ही है और वह उसी कृष्ण के भजन पूजन में लग गयी, लेकिन घर के स्वजन और ससुराल वाले मीरा को भांति -भांति से परेशान करने लगे | वह बहूत ही परेशान हो गयी थी कि क्या किया जाये ? उन्होंने अपने गुरु तुलसीदास को इन सब बातों के लिए लिखा और मार्गदर्शन के लिए उनकी सलाह मांगी |
घर के स्वजन हमारे जेते सबन उपाधि बढ़ाई ! साधू संग अरु भजन करत मोहि , देत कलेश अधनाइ !!बालेपन से मीरा किनी, गिरिधर लाल मिताई ! सो तो अब छुटै नहीं, क्यों हो लगी लगन बरियाई !!
तुलसीदास ने मीरा को सलाह देते हुए लिखा कि जिसके ह्रदय में भगवान के लिए श्रद्धा नहीं हो, उसे छोड़ देने में ही भलाई है. उसे महान दुश्मन समझते हुए छोड़ देना चाहिए | तुलसीदास ने बहूत सारी बातों का ब्यौरा भी दिया कि भक्त प्रह्लाद ने , बिभीषन ने, राजा भरत ने, गोपी ने एवं राजा बलि ने कैसे अपने पिता , बंधू, माता.पति एवं गुरु का क्रमशः त्याग किया था | अंजन लगाने से यदि आँख ही फुट जाये और रौशनी चली जाये तो क्या फायदा अंजन लगाने से ?
जाके ह्रदय ना राम वैदेही, तजिहे ताहि कोटि वैरी सम, यद्यपि परम सनेही
तज्यो पिता प्रह्लाद विभीषण बंधू , भरत महतारी ! बलि गुरु तज्यो, कंत बृजबानितनी, भये मूंद मंगलकारी !!
नाते नेह राम के मनियत, सुह्रदय सु -सेब्य जहाँ लौ ! अंजन कहा आँखि जेहि फूटे ,बहुतेक कहौ कहा लौ
तुलसी सौ सब भांति परम हित , पूज्य प्राण ते प्यारौ ! जासो होए सनेह राम पद , एतो मतों हमारो !!