जगन्नाथ पूरी यात्रा

24.05.2013

 

Orissa
जगन्नाथ पूरी यात्रा

पता नहीं क्यों बचपन से ही हमें तीर्थयात्रा पर जाने की ललक रहा करती थी, नए एवं महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों को नजदीक से देखु । हमारे दादाजी बऱे ही धर्मपरायण थे, भगवान में उनकी पूर्ण आस्था थी,जगन्नाथपुरी का दर्शन उन्होंने कर लिया था,बराबर हमें यात्राओ का विबरण सुनाया करते थे,
मै भी उनके विबरण में पूरी तरीके से डूब जाता था,गर्मी की छुट्टी में जगन्नाथपुरी जाने का अवसर  मिला,मन में हजारो सपने लिए मै जगन्नाथपुरी की यात्रा पर चला ,पटना से करीब 18 घंटा का सफ़र है,  पटना पुरी एक्सप्रेस सुबह 8 बजे पटना से खुलती है ,एवं अगले दिन सुबह 4 बजे पुरी जंक्सन पहुचती है,
समुन्द्र किनारे ही एक लौज में जगह मिल गयी , अपने सामान को रूम में बंद करके सुबह-2 समुन्द्र की ओर चला, मेरे परिवार के लोगो ने अपने जीवन में समुन्द्र को नजदीक से नहीं देखा था, सामने खरा समुन्द्र दहारे मारकर हम सभी का स्वागत करने को मानो कसम खा ली थी, सामने से सूर्य को समुन्द्र से निकलते हुए देखा,

चारो तरफ सिर्फ पानी ही पानी । समुन्द्र की ज्वार -भाटा गजब की रागिनी गा रही थी,पानी पर खरा होना मुश्कील सा लग रहा था,समुन्द्र हमें अपनी गर्भ में छुपा लेना चाहता था, लहर आती थी,एवं चली जाती थी ,गजब को शोर हो रहा था,
अब जगन्नाथजी के मंदिर में जाने का समय आया ,जिसके लिए हम यहाँ आये थे ,हम सभी अति प्राचीन मंदिर में भगवान जगन्नाथ जी का दर्शन किया पूजा अर्चना कि , यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है भगवान श्री कृष्ण , भाई बलराम एवं बहन सुभद्रा की अधूरी मूर्ती का दर्शन किया,

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कहा जाता है की विश्वकर्मा ने खुद इस मंदिर का निर्माण किया था ,कथा तो ये है की उस समय के राजा को स्वप्न में विश्वकर्मा ने एक विशाल मंदिर के निर्माण की इच्छा जताई ,लेकिन शर्त ये रही , की मंदिर तैयार होने के पहले इस गेट को नहीं खोल जाए , लेकिन रानी के आग्रह पर की पता नहीं वे लोग जिन्दा भी है, या मर गए , राजा ने गेट खोल कर देखा , सभी देवता लोग लापता हो गए एवं अधूरी मूर्ति ही रह गयी ,
हर रोज यहाँ पूजा के लिए 56  प्रकार का भोग बनता है, जिसे 200 कारीगर एवं 800 सहायक मिल कर बनाते है , हर साल यहाँ रथ यात्रा का आयोजन होता है , जिसे देखने के लिए देश विदेश से श्रद्धालु भक्त आते है, बहुत ही मनोरम द्रश्य होता है ,
चारो धाम में ,पूरी धाम का बहुत महत्व है, यदि तीनो धाम की यात्रा कर ली जाए और पुरी की यात्रा न की जाए तो चारो धाम की यात्रा अधूरी समझी जाती है , और यदि सिर्फ पुरी की यात्रा की जाए तो सारी यात्रा पुरी कही जायेगी, इसीलिए इसे पुरी कहा जाता है । इस से जगन्नाथ पुरी की महत्ता ज्यादा ही बढ़ जाती है |
दुसरे दिन विश्व प्रसिद्ध चिल्का झील जाने का प्रोग्राम बना , चिल्का झील बहुत विशाल है , जो समुन्दर से सटी है , तथा समुन्दर का पानी से ही इस में पानी आयी है ,वहा जाने के लिए नौका से जाना होता है , डालफिन का वहा पर वसेरा है , अपने मेहमानों का ये डालफिन मन मोह लेती है,उसका नजारा देखते ही बनता है,

 

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तीसरे दिन का प्रोग्राम बना , वहा के प्रमुख जगहों को देखने का ,कोणार्क , धौलागिरी ,उदय गिरी ,खंड गिरी ,लिंग राज मंदिर एवं नंदन कानन चरियाघर ,
कोणार्क मंदिर विश्व प्रशिद्ध है,इसे सूर्य मंदिर भी कहा जाता है , पर पूजा यहाँ नहीं होती है , धौलागिरी पर्वत पर ही सम्राट अशोक एवं कलिंग का युद्ध हुआ था, जिसमें हजारो लोग मारे  गए थे, धौला नदी खून से लाल हो गयी थी , जिसे देख कर सम्राट अशोक ने पुनः युद्ध करने की तौबा कर ली, गौतम बुद्ध के शिष्य बने , और संयाशी की जिन्दगी को अपनाया,
उदय गिरी और खंड गिरी , जहा जैन मुनी अपनी साधना करते है , वहा काले रंग के लंगूर बहुत ही ज्यादा है,

मूंगफली एवं चना उनके आहार है ,आहार नहीं देने पर वे लंगूर कंधे पर बैठ जाते है,तथा आपका चश्मा , कैमरा इत्यादी कब ले कर भाग जायेगे , कोई नहीं जानता । लेकिन मजा बहुत आता है,
लिंग राज मंदिर भी बहुत ही प्राचीन एवं सुन्दर है, वहा पूजा अर्चना के बाद नंदन कानन चिरिया घर जाने के रवाना  हुआ , वहुत  ही बरा चिरिया घर है,  बरा ही सुन्दर एवं अनोखा अनुभव रहा ,
तीसरे दिन समुन्द्र की सैर का प्लान बना , वहा पर गोल्डन बिच जगह है, जहा पर समुन्द्र से निकली हुइ सामानों को खरीदा जा सकता है, नारियल पानी और मालभोग केला का जबाब ही नहीं,

 


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